संबंध तय करना |
- लड़के लड़की का वैवाहिक जीवन में किसी प्रकार कोई अनर्थ न हो इसके लिए उनके माता-पिता ही रिश्ता तय करते हैं।
- संबंध होने से पूर्व लड़की लडके की कुण्डली मिलाई जाती है। इसे गुण मिलाना कहते है।
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सगाई |
- विवाह के लिए एक रूपया और नारियल देकर सगाई पक्की कर दी जाती है। वागड़ क्षेत्र में इसे सगपण कहते है।
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सिंझारी |
- श्रावण कृष्णा तृतीया पर्व तथा इस दिन कन्या या वधू के लिए भेजा जाने वाला सामान।
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टीका |
- संबंध तय हो जाने के बाद वर पक्ष की ओर से वधू पक्ष के घर कपड़े, आभूषण, मिठाईयां, फल आदि ले जाए जाते है।
- वधू को चैकी बैठाकर उसकी गोद भरी जाती है इसके बाद वधू पक्ष की ओर से वर के लिए धन, वस्त्र, उपहार आदि दिये जाते है।
- इस रस्म को गोद भराई प्रथा के नाम से जाना जाता है।
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पहरावणी या चिकणी कोथळी |
- सगाई के बाद वर पक्ष से वधू पक्ष को दिया जाने वाला सामान पहारावणी कहलाता है।
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पीली चिट्ठी/लगन पत्रिका |
- सगाई के पश्चात् पुरोहित से विवाह की तिथि तय करवा कर कन्या पक्ष वाले उसे एक कागज में लिखकर एक नारियल के साथ वर पिता के पास भिजवाते है जिसे लग्न पत्रिका भेजना कहते है।
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कुंकुम पत्री |
- विवाह पर अपने संगे-संबंधियों एवं घनिष्ट मित्रों को आमत्रित करने के लिए जो पत्र भेजा जाता है, उसे कुकुम पत्री कहते है।
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इकताई |
- वर-वधू के लिए कपड़े बनाने के लिए दर्जी मुहूर्त निकलवाने के बाद नाप लेता है, जिसे इकताई कहते है।
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छात |
- विवाह के अवसर पर नाई द्वारा किया जाने वाला दस्तूर विशेष पर दिया जाने वाला नेग छात कहलाता है।
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पाट/बाने |
- विवाह की लग्न पत्रिका पहूँचाने के बाद वर पक्ष व वधू पक्ष दोनो के ही घरो में गणेश पूजा की जाती हैं, उसे पाट कहते हैं।
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हल्दायत |
- तणी बंध जाने के के पश्चात् वर व वधू के पीठी चढाई जाती है, जो मैदा, तिल्ली का तेल व हल्दी से बनाई जाती है।
- घर की चार अचारियाँ स्त्रियाँ एवं चवाँचली स्त्री वर व वधू के पीठी चढाती है। पीठी करने के बाद स्त्रियाँ लगधण लेती है और उसके बाद वर-वधू को स्न्नान करा कर गणेशजी व कुल देवी की पूजा कराई जाती है।
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तेल चढ़ाना |
- वधू के घर बारात आ जाने पर यह रस्म पूरी की जाती है, क्योंकि तेल चढ़ी वधू कुंवारी नहीं रह सकती है। तेल चढाने से आधा विवाह मान लिया जाता है।
- त्रिया तेल हमीर हठ चढ़ै न दूजी बार की कहावत प्रचलित हैं।
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यज्ञ वेदी |
- विवाह मंडप के नीचे यज्ञ वेदी बनाई जाती हैं। इसके पास में घी का दीपक जलाया जाता है। वर और वधू के विवाह संबंधी सभी मांगलिक कार्य यहीं किये जाते है।
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कांकण बंधन |
- वर और वधू के दाहिने हाथ में बाँधा जाने वाला धागा कांकण बंधन कहलाता है।
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रातिजगा |
- वर के घर बारात वापस आने पर दिया जाने वाला रात्रि जागरण राति जगा कहलाता है। रातिजगा में प्रातः कालीन कूकड़ी का गीत गाया जाता है।
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रोड़ी/थेपड़ी पूजन |
- बारात रवाना होने के एक दिन पहले स्त्रियाँ वर को घर के बाहर कूड़ा-कचरे की रोड़ी पूजने के लिए ले जाती है।
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बतीसी/भात नूतना |
- वर तथा वधू की माता अपने पीहर वालो को विवाह के दौरान सहयोग के लिए निमंत्रण दती हैं।
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मायरा/भात भरना |
- वर तथा वधू की माता अपने पीहर वालों केा न्यौता भेजती है तब पीहर वाले अपनी आर्थिक स्थिति के अनुसार उसे जो कुछ देते है, उसे मायरा या भात भरना कहा जाता हैं।
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चाक पूजन |
- विवाह से पूर्व वधू व वर के घर की स्त्रियाँ गाजे बाजे के साथ कुम्हार के घर जाकर चाक पूजन करती है, और लौटते समय सुहागिन स्त्रियाँ सिर पर जेगड़ (कलश) रखकर लाती है।
- घर पहुँचने पर इन महिलाओं के जेगड़ों को घर का जंवाई उतारता है।
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मूठ भराई |
- बरातियों के बीच बैठा कर वर के सामने थाल में रूपये रख कर उसको मुट्ठी में शगुन के रूप में कलदार रूपये लेने को कहा जाता है, इस क्रिया को मूठ भराई कहते हैं।
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बिंदौली/बिंदौरी/निकासी/जान चढ़ाना |
- विवाह के दिन प्रातःकाल या इसके दिन वर सजी-धजी घोडी पर सवार होकर दुल्हन के घर विवाह करने जाने के लिए अपने सगे संबंधियों मित्रों के साथ वधू के घर की ओर रवाना होना जान चढ़ना कहलाता है।
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टूँटीया की रस्म |
- टूँटीया करने की शुरूआत श्री कृष्ण व रूकमणी के विवाह से मानी जाती है यह अनूठे रस्म रिवाजों का मनोंरंजन भरा संगम हैं। ये रस्म बारात जाने के बाद पीछे से घर की औरतो के द्वारा सम्पन्न कराई जाने वाली रस्म हैं।
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ठूमावा/आगवानी/मधुपर्क/सामेला |
- वर के वधू के घर पहूँचने पर वधू का पिता द्वारा अपने संबंधियो का स्वागत करना ही सामेला कहलाता हैं।
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तोरण मारना |
- वधू के घर प्रवेश करने से पहले तोरण एवं कलश वंदन होता है तथा वर वधू के घर के तोरण द्वार पर जाकर घोड़े पर चढ़ा-चढ़ा ही तोरण को तलवार, नीम की डाली या छड़ी से मारता है।
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जेवड़ो |
- तोरण मारने के बाद सासु द्वारा दूल्हें को आँचल से बाँधने की रस्म जेवड़ो कहलाती है।
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दही देना |
- यह रस्म तोरण मारने की बाद है इसके अन्तर्गत सासू दूल्हे के दही व सरसों के तेल का तिलक लगाती है इसे ही दही देना कहलाता है।
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झाला मेला की आरती |
- तोरण मारने के बाद वधू की माँ द्वारा दूल्हे की, की जाने वाली आरती है।
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कामण |
- स्त्रियों द्वारा प्रेम भरे रसीले गीतो को ही कामण कहा जाता है।
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मण्डप छाना |
- वे स्थल जहाँ पर वर-वधू फेरे लेते है यह मण्डप बाँसों का बनाया जाता है।
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हथलेवा जोड़ना |
- इस रस्म के अन्तर्गत विवाह मडंप में वधू का मामा वधू को ले जाकर वधू वर के हाथों में मेंहदी व चाँदी का सिक्का रख कर दोनों के हाथ जोड़ता है जिस हथलेवा जोड़ना कहते है।
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गठबंधन |
- पंण्डित वर और वधू के वस़्त्रों के छोर परस्पर बांधता है इसे गठबंधन कहते है। यह गठबन्धन इस समय से लेकर वर के घर में पहुँचने तक बंधा रहता है।
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अभयारोहण |
- पुरोहित मंत्रो का उच्चारण कर वधू को पतिव्रत पर दृढ रहने की शपथ दिलाता है, इसे अभयारोहण कहते है।
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परिणयन/फेरे/भाँवर/पळेटौ |
- अभयारोहण के तुरन्त बाद की रस्म है, इसके अन्तर्गत वर व वधू अग्नि वैदिका के समक्ष सात फैरे लेते है। जिसे पूर्ण विवाह मान लिया जाता है।
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पगधोई |
- इसके रस्म के अन्तर्गत वधू के माता-पिता द्वारा परिणयन के पश्चाूत् वर का पाँव दूध व पानी से धोया जाता है, इसे पगधोई कहते है।
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कन्यादान |
- यह रस्म फैरो के बाद की है, हथलेवा छुडवाने के पश्चात् वधू के पिता द्वारा दिया जाने वाला दान कन्यादान कहलाता है।
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माया की गेह |
- विवाह मंडप से उठने के पश्चात् की रस्म है इसमें वधू बहनों या सहलियों द्वारा वर से हँसी मजाक करती है आपस में प्रश्नोवतर करती है।
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अखनाल |
- वधू के माता-पिता द्वारा विवाह के दिन रखा जाने वाला उपवास जो वधू का मुख देखकर ही खोला जाता है।
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जेवनवार/विवाह पर दिया जाने वाला भोजन |
- वधू के घर बारातियों को भोजन देने की प्रथा को जेवनवार कहा जाता है।
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जुआ जुई |
- यह रस्म विवाह के दूसरे दिन वर को कंवर कलेवा पर बुलाया जाता है उस समय वर-वधू को जुआ जुई खेलाया जाता है, इसे जुआ जुई या जुआछवी कहा जाता है।
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मांमाटा |
- वधू की सास के लिए भेजे जाने वाला उपहार ही मांमाटा कहलाता है।
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कोयलड़ी |
- वधू की विदाई के समय परिवार की स्त्रियों द्वारा गाया जाने वाला गीत कोयलड़ी कहलाता है।
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सीटणा |
- मेहमानों को भोजन कराते वक्त गाया जाने वाला गीत सीटणा कहलाता है।
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रियाण |
- पश्चिमी राजस्थान में विवाह के दूसरे दिन अफीम के पानी से मेहमानों की मान-मनवार करना रियाण कहलाता है।
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बारणा रोकना |
- वर प्रथम बार वधू को घर लेकर आता है वर के द्वार पर वर की बहनों द्वारा प्रवेश रोकना तथा कुछ दक्षिणा लेने के बाद ही प्रवेश देने देती है, इसे ही बारणा रोकना कहते है।
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जात देना |
- विवाह के पश्चात् वर व वधू पक्ष के लोग अपने देवी-देवताओं को प्रसाद चढानें की रस्म को जात देना कहते है।
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सोटा-सोटी खेलना |
- विवाह के पश्चात् की रस्म है तथा इसमें दूल्हा-दुल्हन नीम के पेड़ नीचे गोलाकार घूमते हुए नीम की टहनियों से एक दूसरे को मारते है, उस समय औरते झुण्ड बनाकर गीत गाती रहती हैं।
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ओलंदी |
- वधू को भाई या सगा सम्बंधी वधू को लेने आने को ही ओलंदी कहते हैं।
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ननिहारी |
- वधू के पीहर की तरफ से लेने आने वाला को ननिहारी कहा जाता है।
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मांडा झाँकना |
- दामाद का सुसराल पहली बार आना ही मांड़ा झाँकना कहलाता है।
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बंदौला |
- वर-वधू द्वारा गाँव के रिश्तेदारों के घर खाने पर जाने को बंदौला कहते है।
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मुकलावा या गौना |
- वर-वधू को गृहस्थी बसाने के लिए वधू के घर वालो की तरफ से दिया जाने वाला वस्त्रादि सामान मुकलावा या गौना कहलाता है।
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बढ़ार |
- वर-वधू को आशीर्वाद समारोह स्थल पर दिया जाने वाला प्रतिभोज बढ़ार कहलाता है।
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