संधि किसे कहते है (Sandhi kise kahte hai,संधि की परिभाषा) :- नमस्कार दोस्तों इस पोस्ट के माधयम से आज हम बात करने वाले है हिंदी व्याकरण (Hindi Vyakran) के एक बहुत अच्छे टॉपिक के बारे में जो है संज्ञा (Sandhi)। इसमें संधि किसे कहते हैं परिभाषा, visarg sandhi, व्यंजन संधि किसे कहते हैं, 20 examples of swar sandhi in hindi, विसर्ग संधि किसे कहते हैं, vyanjan sandhi in hindi, sandhi trick, दीर्घ संधि किसे कहते हैं, sandhi worksheets in hindi, संस्कृत में संधि किसे कहते हैं, sandhi sanskrit, संधि उदाहरण, sandhi chart in hindi, संधि को इंग्लिश में क्या कहते हैं, sandhi in hindi pdf download, व्यंजन संधि के कितने भेद है आदि से सम्बंधित विस्तृत जानकारी दी है।
संधि किसे कहते है संधि का अर्थ
स्वर संधि | स्वर संधि किसे कहते है
विद्या + अर्थी | विद्यार्थी |
सूर्य + उदय | सूर्योदय |
मुनि + इंद्र | मुनीन्द्र |
कवि + ईश्वर | कवीश्वर |
महा + ईश | महेश |
स्वर संधि के भेद | प्रकार
स्वर संधि के पांच भेद होते हैं। यह निम्नलिखित है :-
- दीर्घ संधि
- गुण संधि
- वृद्धि संधि
- यण संधि
- अयादि संधि
दीर्घ स्वर संधि
संधि करते समय अगर (अ, आ) के साथ (अ, आ) हो तो ‘आ‘ बनता है, जब (इ, ई) के साथ (इ , ई) हो तो ‘ई‘ बनता है, जब (उ, ऊ) के साथ (उ ,ऊ) हो तो ‘ऊ‘ बनता है। जब ऐसा होता है तो हम इसे दीर्घ संधि कहते है।
| अत्र+अभाव =अत्राभाव कोण+अर्क =कोणार्क |
| शिव +आलय =शिवालय भोजन +आलय =भोजनालय |
| विद्या +अर्थी =विद्यार्थी |
| विद्या +आलय =विद्यालय |
| गिरि +इन्द्र =गिरीन्द्र |
| गिरि +ईश =गिरीश |
| मही +इन्द्र =महीन्द्र |
| पृथ्वी +ईश =पृथ्वीश |
गुण स्वर संधि
यदि ‘अ‘ या ‘आ‘ के बाद ‘इ‘ या ‘ई ‘ ‘उ‘ या ‘ऊ ‘ और ‘ऋ‘ आये ,तो दोनों मिलकर क्रमशः ‘ए‘, ‘ओ‘ और ‘अर‘ हो जाते है। जैसे-
| देव +इन्द्र=देवन्द्र |
| देव +ईश =देवेश |
| महा +इन्द्र =महेन्द्र |
| चन्द्र +उदय =चन्द्रोदय |
| समुद्र +ऊर्मि =समुद्रोर्मि |
| महा +उत्स्व =महोत्स्व |
| गंगा+ऊर्मि =गंगोर्मि |
वृद्धि स्वर संधि
यदि ‘अ‘ या ‘आ‘ के बाद ‘ए‘ या ‘ऐ‘आये, तो दोनों के स्थान में ‘ऐ‘ तथा ‘ओ‘ या ‘औ‘ आये, तो दोनों के स्थान में ‘औ‘ हो जाता है। जैसे-
| एक +एक =एकैक |
| नव +ऐश्र्वर्य =नवैश्र्वर्य |
| महा +ऐश्र्वर्य=महैश्र्वर्य सदा +एव =सदैव |
| परम +ओजस्वी =परमौजस्वी वन+ओषधि =वनौषधि |
| परम +औषध =परमौषध |
| महा +ओजस्वी =महौजस्वी |
| महा +औषध =महौषध |
यण स्वर संधि
जब ( इ , ई ) के साथ कोई अन्य स्वर हो तो ‘ य ‘ बन जाता है , जब ( उ , ऊ ) के साथ कोई अन्य स्वर हो तो ‘ व् ‘ बन जाता है , जब ( ऋ ) के साथ कोई अन्य स्वर हो तो ‘ र ‘ बन जाता है। यण संधि के तीन प्रकार के संधि युक्त्त पद होते हैं। (1) य से पूर्व आधा व्यंजन होना चाहिए। (2) व् से पूर्व आधा व्यंजन होना चाहिए। (3) शब्द में त्र होना चाहिए।
| यदि +अपि =यद्यपि |
| अति +आवश्यक =अत्यावश्यक |
| अति +उत्तम =अत्युत्तम |
| अति +उष्म =अत्यूष्म |
| अनु +आय =अन्वय |
| मधु +आलय =मध्वालय |
| गुरु +ओदन= गुवौंदन |
| गुरु +औदार्य =गुवौंदार्य |
| पितृ +आदेश=पित्रादेश |
अयादि स्वर संधि
यदि ‘ए‘, ‘ऐ‘ ‘ओ‘, ‘औ‘ के बाद कोई भिन्न स्वर आए, तो (क) ‘ए‘ का ‘अय्‘, (ख ) ‘ऐ‘ का ‘आय्‘, (ग) ‘ओ‘ का ‘अव्‘ और (घ) ‘औ‘ का ‘आव‘ हो जाता है। जैसे-
| श्रो+अन =श्रवन (पद मे ‘र‘ होने के कारण ‘न‘ का ‘ण‘ हो गया) |
| |
| |
| श्रौ+अन =श्रावण (‘श्रावण‘ के अनुसार ‘न‘ का ‘ण‘) |
व्यंजन संधि
व्यंजन से स्वर या व्यंजन के मेल से उत्पत्र विकार को व्यंजन संधि कहते है।
या
व्यंजन के दूसरे व्यंजन या स्वर से मेल को व्यंजन संधि कहते हैं।
या
व्यंजन का व्यंजन से या किसी स्वर से मेल होने पर जो परिवर्तन होता है उसे व्यंजन संधि कहते हैं।
उदाहरण :-
शरत् + चंद्र = शरच्चंद्र
नियम:
1. किसी वर्ग के पहले वर्ण जैसे क्, च्, ट्, त्, प् का मेल किसी वर्ग के तीसरे या चौथे वर्ण या य्, र्, ल्, व्, ह या किसी स्वर से हो जाए तो, क् को ग् । च् को ज् । ट् को ड् एवं प् को ब् हो जाता है।
उदाहरण:
2. यदि किसी वर्ग के पहले वर्ण जैसे क्, च्, ट्, त्, प् का मेल न् या म् वर्ण से हो तो उसकी जगह पर उसी वर्ग का पाँचवाँ वर्ण हो जाता है। उदाहरण: –
3. यदि त् का मेल ग, घ, द, ध, ब, भ, य, र, व या किसी स्वर से हो जाए तो वहां द् हो जाता है। उदाहरण: –
4. यदि त् से परे च् या छ् होने पर च, ज् या झ् होने पर ज्, ट् या ठ् होने पर ट्, ड् या ढ् होने पर ड् एवं ल तो वहां पर ल् हो जाता है।
उदाहरण: –
5. यदि त् का मेल यदि श् से हो तो वहां त् को च् एवं श् का छ् बन जाता है।
उदाहरण:-
6. यदि त् का मेल यदि ह् से होतो है तो वहां त् का द् एवं ह् का ध् हो जाता है।
उदाहरण :-
7. यदि स्वर के बाद यदि छ् वर्ण आ जाए तो वहां छ् से पहले च् वर्ण बढ़ा दिया जाता है। उदाहरण: –
8. म् के बाद क् से म#2381; तक कोई व्यंजन हो तो वहां म् अनुस्वार में बदल जाता है।
उदाहरण :-
9. यदि म् के बाद म का द्वित्व हो जाता है। जैसे –
10. यदि म् के बाद य्, र्, ल्, व्, श्, ष्, स्, ह् में से कोई व्यंजन होने पर म् का अनुस्वार हो जाता है।
उदाहरण –
11. यदि ऋ, र्, ष् से परे न् का ण् हो जाता है। परन्तु चवर्ग, टवर्ग, तवर्ग, श और स का व्यवधान हो जाने पर न् का ण् नहीं होता।
उदाहरण –
12. स् से पहले अ, आ से भिन्न कोई स्वर आ जाए तो स् को ष हो जाता है। जैसे –
विसर्ग संधि
विसर्ग के साथ स्वर या व्यंजन मेल से जो विकार होता है, उसे विसर्ग संधि कहते है।
- मन: + अनुकूल = मनोनुकूल
- नि: + पाप =निष्पाप
नियम
- मनः + अनुकूल = मनोनुकूल ;
- मनः + बल = मनोबल
- दुः + चरित्र = दुश्चरित्र
- निः + छल = निश्छल
- तपश्चर्या = तपः + चर्या
- अन्तश्चेतना = अन्तः + चेतना
- धनुः + टंकार = धनुष्टंकार
- चतुः + षष्टि = चतुष्षष्टि
- निः + छल = निश्छल
- दुः + शासन = दुश्शासन
- निः + शुल्क = निश्शुल्क
- चतुश्श्लोकी = चतुः + श्लोकी
- निः + आहार = निराहार
- निः + धन = निर्धन
- दुः + कर = दुष्कर
- चतुः + पथ = चतुष्पथ
- निष्काम = निः + काम
- बहिष्कार = बहिः + कार
- नमः + ते = नमस्ते
- दुः + साहस = दुस्साहस
- अन्त: + तल = अन्तस्तल
- दु: + तर = दुस्तर
- निस्तेज = निः + तेज
- मनस्ताप = मन: + ताप
- निः + रोग = निरोग
- प्रातः + काल = प्रात: काल
- वय: क्रम = वय: क्रम
- तप: पूत = तप: + पूत
- अन्त: करण = अन्त: + करण
- भा: + कर = भास्कर
- पुर: + कार = पुरस्कार
- बृह: + पति = बृहस्पति
- तिर: + कार = तिरस्कार
- चतुः + पाद = चतुष्पाद
- नि: + रस = नीरस
- नि: + रोग = नीरोग
- नीरज = नि: + रज
- चक्षूरोग = चक्षु: + रोग
- नि: + सन्देह = निस्सन्देह
- नि: + स्वार्थ = निस्स्वार्थ
- निस्संतान = नि: + संतान
- मनस्संताप = मन: + संताप
- अंतः + करण = अंतःकरण
- सर: + ज = सरोज
- यश: + धरा = यशोधरा
- अध: + भाग = अधोभाग
- मन: + रंजन = मनोरंजन
- मनोहर = मन: + हर
- तपोभूमि = तप: + भूमि
- यशोदा = यश: + दा
- पुन: + अवलोकन = पुनरवलोकन
- पुन: + उद्धार = पुनरुद्धार
- अन्त: + द्वन्द्व = अन्तद्र्वन्द्व
- अन्त: + यामी = अन्तर्यामी
- अत: + एव = अतएव
- पय: + आदि = पयआदि
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Bhut acha h sir… Sandhi padthe hu sir bhul jate hu m bar bar kya karu
apko test provide karwaye jayenge dear…..yha pr bhi test h agr aap lagana chao to