कोशिका किसे कहते हैं इसकी संरचना और कार्य

कोशिका किसे कहते हैं (कोशिका की परिभाषा,कोशिका किसे कहते हैं, इसके अंग और कार्य) :- इस पोस्ट के माध्यम से आज हम कोशिका की परिभाषा (kosika ki pribhasa), इसके अंग और कार्य (Kosika ke kary) ,कोशिका के केंद्रक की संरचना और कार्य,कोशिका के प्रकार,पादप में कोशिका के प्रकार,कोशिका की संरचना एवं भाग कोशिका भित्ति ,जीवद्रव्य,रिक्तिका और इसके प्रकार आदि के बारे में विस्तार से पढ़ेंगे। आप अच्छे से इनके बारे में अध्ययन करें। ताकि आगे आने वाले विभिन प्रतियोगी परीक्षाओ जैसे राजस्थान रीट (Rajasthan REET),IIT, NIT, AIIMS Exam आदि में आप अच्छे नम्बर प्राप्त कर सको। तो आइये देखते है कोशिका किसे कहते हैं कोशिका किसे कहते हैं (Kosika Kise kahte Hai) के बारे में एक महत्वपूर्ण जानकारी।

कोशिका किसे कहते हैं

पादपों एवं जंतुओं का शरीर भी छोटी इकाईयों के व्यवस्थित रूप से जुड़ने के कारण निर्मित होता है। जीवन की इस सूक्ष्मतम इकाई को कोशिका (Cell) कहा जाता है, जिसका सामान्य अर्थ छोटे कोश में लिया जा सकता है। यही कोशिकाओं लाखों करोड़ों की संख्या में एकीकृत होकर संपूर्ण शरीर का निर्माण करती है।

जीव जगत की सबसे छोटी कार्य करने वाली एवं सरंचनात्मक ईकाई को कोशिका कहा जाता है| इसी प्रकार कोशिका के अध्ययन एवं प्रयोग करने के विज्ञानं को Cytology या कोशिका विज्ञानं कहा जाता है| सर्वप्रथम रोबर्ट हुक, जो की एक अंग्रेज वैज्ञानिक थे, उन्होने 1665 ई. में कोशिका शब्द का प्रयोग किया।

सबसे छोटी कोशिका मायिकोप्लाज़म गैलीसेप्टिकमा की होती है, जो की एक जीवाणु है। सबसे बड़ी कोशिका शुतुरमुर्ग नामक पक्षी के अंडे की होती है, एवं सबसे लम्बी कोशिका तंत्रिका तंत्र की बताई गई है।

शेलायीदेन एवं श्वान ने 1838 – 39 में कोशिका सिदान्त का प्रतिपादन किया, जिसकी मुख्य बाते इस प्रकार है:-

  • प्रत्येक जीव जाति का शरीर एक या एक से अधिक कोशिकाओं का बना होता है।
  • कोशिका निर्माण की प्रक्रिया के समय कोशिका का केन्द्रक उसका प्रमुख अभिकर्ता माना जाता है।

कोशिका के प्रकार

वैज्ञानिक वर्गीकरण के आधार पर मुख्य रूप से कोशिका के 2 प्रकार बताये गये है, जो इस प्रकार है:-

  • प्रोकेरियोटिक कोशिका :- इन कोशिकाओं के अंदर क्रोमेटिन नहीं बनता क्योकि इनमें हिसटोन नामक प्रोटीन नहीं पाया जाता।डी.एन.ए. के गुन्सुत्रो के अलावा अन्य कोई आवरण इसके आसपास नहीं रहता है, एवं केन्द्रक नामक कोशिका अंग का भी इसमें लेश मात्र विकास भी नहीं हो पाता। अधिकांश रूप से नील हरित शैवालों एवं जीवाणुओं में इस प्रकार की कोशिकाए पाई जाती है।
  • यूकेरियोटिक कोशिका :- इन कोशिकाओ में केन्द्रक एवं दोहरी झीली का आवरण पाया जाता है, इसमें हिसटोन प्रोटीन एवं डी.एन.ए से मिलकर क्रोमेटिक पाया जाता है, इसके साथ-साथ इसमें केंद्रिका का भी समावेश होता है।

कोशिका के भाग

कोशिका में प्रमुख रूप से तीन भाग पाए जाते हैं –

  • कोशिका भित्ति ( cell wall )
  • जीवद्रव्य ( protoplasm )
  • रसधानियां या रिक्तिकाएं ( Vacuole )

कोशिका भित्ति ( Cell wall )  पादप कोशिकाओ की सबसे बाहरी कठोर , मजबूत , मोटी तथा छिद्रयुक्त , पारगम्य तथा निर्जीव आवरण को कोशिका भित्ति कहते हैं| Robert hooke ने कोशिका भित्ति ( Cell wall ) की खोज की थी।

कोशिका भित्ति का निर्माण कोशिका विभाजन ( Cell division ) की अंत्यावस्था ( Telophase ) के समय अंतः प्रद्रव्यी जालिका ( Endoplasmic reticulum ) की छोटी – छोटी नलिकाओं के माध्यम से होता हैं । कोशिका भित्ति पादपों में उपस्थित तथा जन्तुओ में अनुपस्थित होती हैं। पादपो में कोशिका भित्ति सेल्यूलोस तथा पेक्टोस की बनी होती हैं |सामान्यतः बहुत से कवको ( Fungi ) तथा यीस्ट में कोशिका भित्ति काईटिन के द्वारा बनती हैं । तथा शैवालो ( Algae ) में कोशिका भित्ति का निर्माण गैलक्टेन मैंनन ,कैल्सियम कार्बोनेट से बना होता हैं। द्वितीयक कोशिका भित्ति सेल्युलोज पेक्टिन तथा लिग्निन आदि पदार्थो की बनती हैं | त्तृतीयक कोशिका भित्ति का निर्माण जाईलन नामक पदार्थ द्वारा होता हैं । कोशिका भित्ति की सबसे बाहरी प्राथमिक कोशिका भित्ति पतली , कोमल , लोचदार तथा पारगम्य होती हैं। मध्य पटल ( Middle lamella ) का निर्माण कैल्सियम तथा मैग्नीसियम के पेक्टेट्स द्वारा होता हैं ।

प्लाज्मा मेम्ब्रेन

प्लाज्मा मेम्ब्रेन कोशिका के कोशिका द्रव्य और जीवद्रव्य की सबसे बाहरी परत होती हैं । यह कोशिका में प्रवेश करने वाले तथा बाहर निकलने वाले विभिन्न अणुओं तथा आयनों पर नियंत्रण तथा कोशिका द्रव्य में आयनों की सांद्रता को बनाये रखती हैं । प्लाज्मा मेम्ब्रेन जंतु कोशिकाओं में पायी जाने वाली सबसे बाहरी परत तथा पादप कोशिकाओं में पायी जाने वाली दूसरी परत हैं।

प्लाज्मा मेम्ब्रेन के अन्य नाम – प्लाज्मा झिल्ली , जीव कला / कोशिका झिल्ली  ( cell membrane ) , बायोलोजिकल मेम्ब्रेन , प्लाज्मा लेमा , प्लाज्मा जैल , सारकोलेमा , न्यूरोलेमा आदि |

कोशिका झिल्ली लिपिड व प्रोटीन की बनी होने के कारण इसे लाइपोप्रोटीन झिल्ली भी कहते हैं , कुछ कोशिकाओं की कोशिका झिल्ली में कम मात्रा में कार्बोहाइड्रेट्स भी होते हैं |

जीवद्रव्य / Protoplasm

जीवद्रव्य सभी सजीव कोशिकाओं में पाया जाता हैं | इसमें पाये जाने वाले समस्त पदार्थ को जीवद्रव्य कहते हैं ।

जीवद्रव्य (Protoplasm ) नाम सर्वप्रथम पुरकिन्जे ( 1840) तथा एच. बी. मोहल ( 1846 ) ने दिया था।

जीव में सम्पन्न होने वाली सभी जैविक क्रियाएं जीवद्रव्य में सम्पन्न होती हैं | इसलिए जीवद्रव्य को जीवन का भौतिक आधार ( Physical basis of life ) कहा जाता हैं । जीवद्रव्य का Ph = 6.5 – 7.0 होती हैं। जीवद्रव्य में वृध्दि तथा विभाजन पाए जाते हैं । नया जीवद्रव्य पुराने जीवद्रव्य के अंदर बनता हैं ।

जीवद्रव्य के गुण

जीवद्रव्य ( protoplasm ) के निम्न गुण हैं:-

  • भौतिक गुण – जीवद्रव्य रंगहीन , अर्धपारदर्शक तथा अर्धतरल पदार्थ हैं | जीवद्रव्य में 60 – 70% जल पाया जाता हैं | जिसमे अकार्बनिक तथा कार्बनिक पदार्थ मिले रहते हैं | जीवद्रव्य में विभिन्न पदार्थ अणु व आयन के रूप में मिले रहते हैं इनके मिश्रण को क्रिस्टलीय घोल कहते हैं | जीवद्रव्य में ब्राउनी गति पायी जाती हैं |
  • रासायनिक गुण – जीवद्रव्य के जटिल मिश्रण में लगभग 30 तत्व जिनमे मुख्य रूप से ऑक्सीजन , कार्बन हाइड्रोजन तथा नाइट्रोजन क्रमशः 62% , 20% , 10% ,8% के अनुपात में होते हैं तथा शेष सोडियम , पोटेशियम , कैल्सियम , लोहा तथा सल्फेट इत्यादि पदार्थ सूक्ष्म मात्रा में होते हैं ।

रसधानियाँ या रिक्तिकाएं / Vacuole

रिक्तिकाएं पादप कोशिकाओं में पायी जाती हैं | कोशिका द्रव्य में गोल , खोखले तथा झिल्ली द्वारा घिरे स्थान को रिक्तिका या रसधानी कहते हैं। Dujardin ( 1841 ) ने रिक्तिका नाम दिया ।संकुचनशीलधानी ( Contractile vacuoles ) की खोज Spallanzani ( 1776 ) ने प्रोटोज़ोआ में की थी। रिक्तिकाएं पादप कोशिकाओं में पायी जाती तथा जन्तुं कोशिका में अपेक्षाकृत कम पायी जाती हैं । रिक्तिका का निर्माण आंतरद्रव्यजालिका ( Smooth endoplasmic reticulum – SER ) से होता हैं । रिक्तिका एक नॉनसाइटोप्लाज्मिक सैक हैं | पुष्प व फलों के रंग रिक्तिकाओं में एन्थोसाइनिन पाए जाने के कारण होता हैं।

रिक्तिकाओं के प्रकार

रिक्तिकाएं चार प्रकार की होती हैं ।

  • रसधानी ( Sap vacuoles )
  • संकुचनशीलधानी ( Contractile vacuoles )
  • पाचन धानी ( Food vacuole )
  • गैस धानी ( Gas and air vacuoles / pseudovacuoles )

रिक्तिका के कार्य

  • रिक्तिका कोशिका के कोशिका द्रव्य में पाए जाने वाले कोलॉइडी मैट्रिक्स को यांत्रिक बल प्रदान करती हैं ।
  • रिक्तिका परासरण नियमन (Osmo regulation ) में मद्त करती हैं | अकोशकीय जीवों में।
  • रिक्तिका प्रकाश संश्लेषण की क्रिया में भाग लेती हैं जैसे – CAM ( क्रेस्यूलियन ऐसिडमेटा बोलिज्म ) पौधे।
  • रिक्तिका उच्च श्रेणी के पौधों में स्फीती दाब ( Turgor pressor ) को नियंत्रित करती तथा कोशिका को स्फीत ( Turgid ) बनाये रखती हैं ।

कोशिका के केंद्रक की संरचना और कार्य

कोशिका के मध्य में विदद्यमान गोलाकार या अंडाकार संरचना को केंद्रक कहते हैं इसकी सर्वप्रथम खोज रॉबर्ट ब्राउन ने की थी प्राय:एक कोशिका में एक केंद्र होता है।

कोशिका भित्ति

यह कोशिका को निश्चित आकृति एवं आकार बनाये रखने में सहायक होता है।यह सेलुलोज का बना होता है. यह केवल पादप कोशिका में पाया जाता है. जीवाणु का कोशिका भित्ति पेप्टिडोगलकेन का बना होता है। पादपों की कोशिका भित्ती तीन पर्तो की बनी होती है-

  • प्राथमिक भित्ती (Primary Cell Wall) (सबसे आंतरिक पर्त)
  • द्वितीयक भित्ती (Secondary Cell Wall) (मध्य पर्त)
  • तृतीयक भित्ती (Tertiary Cell Wall) (बाह्यतम पर्त)।

केंद्रक झिल्ली

केंद्रक के चारों ओर दोहरे परत का एक आवरण होता है। जिसे केंद्रक झिल्ली कहते हैं इसमें छोटे-छोटे अनेक छिद्र होते हैं जिनके द्वारा केंद्रक के भीतर का केंद्रक द्रव्य बाहर जा सकता हैं असीम केंद्र की कोशिकाओं में केंद्रक झिल्ली नहीं होती।

केंद्रक द्रव्य

केंद्रक झिल्ली से घिरे पदार्थ को केंद्रक द्रव्य कहते हैं यह पारदर्शी,कोलॉइजी तरल होता है. जो न्यूक्लियो प्रोटीन से बना होता है. इस में राइबोसोम्ज,खनिज लवण एंजाइम आर.एन.ए. क्रोमेटिन धागे तथा केंद्रिक पाए जाते हैं.

क्रोमेटिन पदार्थ

क्रोमेटिन पदार्थ धागे के समान बारीक रचनाओं का जाल होता है। जब कभी कोशिका का विभाजन होने वाला होता है. तो वह क्रोमोसोम में संगठित हो जाता है। क्रोमोसोम में आनुवंशिक गुण होते हैं जो माता-पिता से DNA अनुरूप में अगली पीढ़ी में जाते हैं डी.एन.ए तथा प्रोटीन से गुणसूत्र बनते हैं और इनमें कोशिका के निर्माण और संगठन की सभी विशेषताएं उपलब्ध होती है। DNA के क्रियात्मक खंड को जिन कहते हैं जिस कोशिका का विभाजन नहीं हो रहा होता है। उसमें DNA क्रोमेटिन के रूप में रहता है. विभिन्न जीव धारियों में क्रोमोसोम की संख्या अलग-अलग होती है। पर एक ही जाति के सभी प्राणियों में इनकी संख्या एक समान होती है। क्रोमोसोम की संरचना में बदलाव होने से जीव जंतुओं में विभिन्नताएं उत्पन्न हो जाती है। रिबोंयुक्लिक अम्ल है. जो केंद्रिका में प्रोटीन संश्लेषण में सहायक होता है।

केंद्रक

कोशिका के केंद्रक में एक या दो केंद्रिका होती है। इसमें प्रोटीन आर.एन.ए तथा DNA होते हैं असीम केंद्रीय की कोशिकाओं में केंद्रीय नहीं होता बैक्टीरिया जैसे कुछ जीवो में कोशिका का केंद्रीय क्षेत्र बहुत कम स्पष्ट होता है क्योंकि इनमें केंद्रक झिल्ली की अनुपस्थिति रहती है।

केंद्रक के कार्य

1.यह अनुवांशिक लक्षणों को एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी तक स्थानांतरण का आधार है।
2.यह कोशिका विभाजन के लिए जिम्मेदार होता है।
3.यह कोशिका की सभी उपापचय पर नियंत्रण रखता है।
4.यह शरीर की वृद्धि के लिए उत्तरदाई होते हैं।

माइटोकॉण्ड्रिया / Mitochondria

यह कोशिकाद्रव्य मे स्वतंत्र तैरने वाला दोहरी झिल्ली से घिरा कोशिकांग होता है। माइटोकॉण्ड्रिया को कोशिका का ऊर्जा गृह (energy house) कहा जाता है, क्योंकि ग्रहण किये हुए भोजन का यहीं ऑक्सीकरण होता है जिसके फलस्वरूप ATP के रूप में ऊर्जा मुक्त होती है। माइटोकॉण्ड्रिया के अंदर एक खास बात है कि इस कोशिकांग के अंदर इसका स्वयं का DNA और राइबोसोम होते हैं।

गॉल्गीबॉडी /Golgi body

यह भी कोशिकाद्रव्य में उपस्थित दोहरी झिल्ली से घिरा हुआ कोशिकांग होता है। गॉल्गीबॉडी ब्रायोफाइटा एवं टेरीडोफाईटा के नर युग्मक, परिपक्व चालनी कोशिकाएँ तथा प्राणियों के लाल रक्त कोशिकाओं एवं परिपक्व शुक्राणु के अतिरिक्त सभी यूकैरियोटिक कोशिका में पाया जाता है। गॉल्गीबॉडी का ही एक अन्य नाम डिक्टियोसोम (Dictyosome) है जिसका प्रयोग पादपों एवं अकशेरूक प्राणियों के लिए किया जाता है। गॉल्गीबॉडी में राइबोसोम का निर्माण होता है, यह एण्डोप्लाज्मिक रेटीकुलम द्वारा बने पदार्थ गॉल्गी बॉडी द्वारा पैक किये जाते हैं।

एन्डोप्लाज्मिक रेटीकुलम / Endoplasmic Reticulum

यह भी कोशिकाद्रव्य में पाया जाने वाला दोहरी झिल्ली से घिरा कोशिकांग होता है। कोशिका में दो प्रकार के अंत:द्रव्यी जालिका (ER) पाये जाते हैं। जिन ई. आर. की सतह पर राइबोसोम के कण चिपके होते हैं, उनकी सतह खुरदुरी हो जाती है, इसलिए इसे खुरदुरी अंत:द्रव्यी जालिका (Rough endoplasmic reticulum) और जिन ई. आर. में राइबोसोम के कण नहीं चिपके होते, इन्हें चिकनी अंत:द्रव्यी जालिका (Smooth endoplasmic reticulum) कहते हैं। खुरदुरी ई. आर. पर चिपके राइबोसोम पर प्रोटीन संश्लेषण का कार्य होता है। ई.आर. आवश्यक निर्मित पदार्थों को विभिन्न कोशिकांगों तक पहुँचाने का भी कार्य करते हैं।

प्लास्टिड / Plastid

ये कोशिकांग मात्र पादप कोशिकाओं में पाये जाते हैं। ये भी दोहरी झिल्ली से घिरे कोशिकांग होते हैं, और माइटोकॉण्ड्रिा की तरह इनमें भी इनका अपना DNA पाया जाता है।
प्लास्टिड दो प्रकार के होते हैं-
(1) क्रोमोप्लास्ट और (2) ल्यूकोप्लास्ट।
इनमें क्रोमोप्लास्ट रंगीन होते हैं, और ल्यूकोप्लास्ट रंगहीन। ल्यूकोप्लास्ट भोजन संग्रह का कार्य करते हैं। जिन प्लास्टिड में हरा रंग पाया जाता है, उन्हे क्लोरोप्लास्ट कहा जाता है। क्लोरोप्लास्ट में क्लोरोफिल पाया जाता है, जिसके कारण ये हरे होते हैं। ये क्लोरोफिल प्रकाश संश्लेषण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।

लाइसोसोम / Lysosome

यह कोशिकांग एक झिल्ली से घिरा होता है। इसका मुख्य कार्य है पाचन। यह कोशिका के अपशिष्ट पदार्थों का भक्षण करके उसे कोशिका झिल्ली के बाहर भेजने का कार्य करते हैं। इसमें एन्डोप्लाज्मिक रेटीकुलम द्वारा निर्मित पाचक एन्जाइम होते हैं, जो इस क्रिया को संपन्न करते हैं। लाइसोसोम को कोशिका की आत्महत्या की थैली (Suicidal bag) कहा जाता है, क्योंकि कई बार यह थैली फट जाती है, और इसके पाचक एन्जाइम कोशिकाद्रव्य में बाहर निकल आते हैं, और कोशिका के दूसरे कोशिकांगों का भक्षण करने लगते हैं, जिसके कारण पूरी कोशिका समाप्त हो जाती है। लाइसोसोम बाह्य रोगकारक आदि का भक्षण करके कोशिका की रक्षा करते हैं।

राइबोसोम / Ribosome

राइबोसोम अत्यंत सूक्ष्म कण की तरह होते हैं जो मात्र इलेक्ट्रॉन सूक्ष्मदर्शी से देखे जा सकते हैं। राइबोसोम झिल्ली रहित संरचना होती है, यह यूकैरियोटिक तथा प्रोकैरियोटिक दोनों कोशिकाओं में पायी जाती है। राइबोजोम में RNA पाया जाता है। कोशिका के अंदर राइबोसोम कोशिकाद्रव्य में स्वतंत्र अवस्था में अथवा खुरदुरी एण्डोप्लाज्मिक रेटीकुलम की सतह पर चिपके हुए होते हैं। राइबोजोम प्रोटी संश्लेषण का कार्य करते हैं। राइबोसोम दो प्रकार के होते हैं- 70s राइबोसोम छोटे होते हैं तथा जीवाणु एवं नील हरित शैवाल जैसे प्रोकैरियोटिक जीवों की कोशिकाओं में पाये जाते हैं जबकि 80 s राइबोसोम उन्नत जीवों की कोशिकाओं में पाये जाते हैं।

परीक्षा उपयोगी मुख्य तथ्य – कोशिका किसे कहते हैं

  • कोशिकाओं का अध्ययन जीव विज्ञान की जिस शाखा के अंतर्गत किया जाता है, उसे कोशिका विज्ञान (Cytology) कहा जाता है।
  • जीवन की संरचनात्मक (Structural) एवं क्रियात्मक (Functional) इकाई कोशिका (Cell) कहलाती है।
  • कोशिका की खोज राबर्ट हुक ने की थी इन्होंने स्वनिर्मित सूक्ष्मदर्शी से सर्वप्रथम कार्क की मृत कोशिका को देखा था।
  • जीवित कोशिका को सर्वप्रथम देखने का श्रेय एन्टोनीवॉन ल्यूवेनहॉक को कहा जाता है।
  • शुतुरमुर्ग का अंडा अभी तक की ज्ञात सबसे बड़ी कोशिका है।
  • कोशिका झिल्ली के अंदर घिरा पदार्थ जीवद्रव्य (Protoplasm) कहलाता है। यह जीवन का भौतिक आधार (Physical basis of life) होता है।
  • कोशिका द्रव्य में माइटोकॉण्ड्रिया, गॉल्गीबॉडी, एण्डोप्लाज्मिक रेटीकुलम प्लास्टिड दोहरी झिलली से घिरी संरचाएँ होती हैं, इनके अतिरिक्त कोशिकाद्रव्य में रिक्तिकाएँ, लाइसोसोम, आदि पाये जाते हैं।
  • केन्द्रक द्रव्य में केन्द्रिका, गुणसूत्र, तारककाय आदि पाये जाते हैं।
  • माइटोकॉण्डिया एवं प्लास्टिड के पास अपना डीएनए आरएनए होता है।
  • जंतु कोशिका में प्लास्टिड (Plastid) एवं कोशिका भित्ती को छोड़कर पादप के अन्य सभी कोशिकांग पाये जाते हैं।
  • बहुकोशिकीय जीवों में दो कोशिकाओं के बीच का अवकाष्ठा अंतर्कोष्ठिाकीय अवकाष्ठा (Intercellular space) कहलाता है।
  • जटिलता के आधार पर कोशिका दो प्रकार के होते हैं- आदिम प्रकार को कोशिका प्राकैरियोटिक कोशिका होती है उन्न्त प्रकार की कोशिका यूकैरियोटिक कोशिका होती है।
  • प्रोटीन तथा लिपिड की बनी कोशिका झिल्ली चयनात्मक पारगम्य (selective permiable) होती है।
  • माइटोकॉण्ड्रिया को कोशिका का ऊर्जा गृह (Power house) कहा जाता है, क्योंकि ग्रहण किये हुए भोजन का यहीं ऑक्सीकरण होता है जिसके फलस्वरूप ATP के रूप में ऊर्जा मुक्त होती है।
  • गॉल्गीबॉडी का मुख्य कार्य वसा का संचय करना है? यह एण्डोप्लाज्मिक रेटीकुलम द्वारा बने पदार्थ गॉल्गी बॉडी द्वारा पैक किये जाते हैं। इनमें राइबोसोम का निर्माण होता है।
  • एन्डोप्लाज्मिक रेटीकुलम कोशिका का कंकाल तंत्र कहलाता है क्योंकि यह कोशिका का ढाँचा बनाता है तथा कोशिका को मजबूती प्रदान करता है।
  • कोशिका में दो प्रकार के अंत:व्यी जालिका (ER) पाये जाते हैं (1) खुरदुरे (सतह पर राइबोसोम चिपके हुए) और (2) चिकने(सतह पर राइबोसोम अनुपस्थित) राइबोसोम में प्रोटीन संश्लेषण की सूचनाएँ होती हैं।
  • राइबोसोम को कोशिका का प्रोटीन संश्लेषण का प्लेटफार्म (Plateform of Protein Synthesis) कहते हैं।
  • लाइसोसोम का मुख्य कार्य है पाचन, यह कोशिका के अपशिष्ट पदार्थो का भक्षण करके उसे कोशिका झिल्ली के बाहर भेजने का कार्य करते हैं,
  • लाइसोसोम को कोशिका की आत्महत्या की थैली (Suicidal bag of the cell) कहा जाता है।
    पादप कोशिकाओं में रसधानियों का आकार जंतु कोशिका की तुलना में बड़ा होता है।
  • प्लास्टिड दो प्रकार के होते हैं- (1) क्रोमोप्लास्ट और (2) ल्यूकोप्लास्ट, क्रोमोप्लास्ट रंगीन होते हैं, और ल्यूकोप्लास्ट रंगहीन।
    लाइकोपीन टमाटर को लाल रंग प्रदान करता है इसी प्रकार जैन्थोसाइनीन बैंगन को बैंगनी रंग प्रदान करता है, आदि।
  • ल्यूकोप्लास्ट भोजन संग्रह का कार्य करते हैं।
  • जिन प्लास्टिड में हरा रंग पाया जाता है, उन्हे क्लोरोप्लास्ट कहा जाता है। क्लोरोप्लास्ट में क्लोरोफिल पाया जाता है, जिसके कारण ये हरे होते हैं और प्रकाशसंश्लेषण में सहायता करते हैं।
  • केन्द्रक गोलाकार या अंडाकार होता है तथा सामान्यतः कोशिका के मध्य भाग में एक रन्ध्रदार झिल्ली के भीतर बंद रहता है, जो इसे कोशिका-द्रव्य से पष्टथक होती है।
  • हर एक नाभिक के एक या दो अनुनाभिक (Nucleoli) होते हैं जिनमें न्यूक्लाइक अम्लों का संश्लेषण होता है।
    क्रोमोजोम प्रोटीन और डीऑक्सीन्यूक्लाइक अम्ल का बना होता है। आनुवांष्ठिाक गुणों का संप्रेषण क्रोमोजोम पर निर्भर करता है।

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